बाल शोध मेला: जीपीएस चकरपुर में आयोजित बाल शोध मेले का अध्ययन और अनुभव

बाल शोध मेला: जीपीएस चकरपुर में आयोजित बाल शोध मेले का अध्ययन और अनुभव
🖋️नवीन सिंह 

दिनांक 10 मार्च 2025 को जीपीएस चकरपुर में बाल शोध मेले का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रतिभा , क्षमताओं और योग्यता का परिचय दिया ।

अक्सर हम बच्चों को सीखने और सिखाने के लिए सिर्फ कक्षा कक्ष का उपयोग करते हैं, जिसमें बच्चे अपने शिक्षक द्वारा बताई गई बातों व पुस्तक के ज्ञान से अपनी समझ को विकसित करने का प्रयास करते हैं। लेकिन जब बच्चों को कक्षा कक्ष से बाहर निकलकर स्वयं खोज के अवसर मिलते हैं तब खोज पर आधारित वे जो ज्ञान प्राप्त करते हैं ,तब वह ज्ञान स्थाई और अनुभव आधारित होता हैं। जिससे वे एक अलग तरह की समझ को विकसित करने का प्रयास करते हैं, जो जीवन पर्यन्त के साथ साथ एक नई दिशा में सोचने, समझने और कुछ अलग करने का अवसर प्रदान करता है।
 आज के समय में बच्चों को खोज व अनुभव आधारित समझ विकसित करने हेतु विद्यालय स्तर पर विभिन्न तरह के अवसर प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसे बाल शोध मेले के नाम से संबोधित किया जाता है।
 आओ आगे बढ़ने से पहले हम बाल शोध मेले के बारे में अपनी समझ विकसित करने का प्रयास करते हैं जैसा  कि बाल शोध मेला (Children’s Research Fair) एक ऐसी शैक्षिक गतिविधि है, जिसमें बच्चे अपने आस-पास के विषयों, वैज्ञानिक अवधारणाओं, सामाजिक मुद्दों, ऐतिहासिक घटनाओं या सांस्कृतिक पहलुओं पर शोध करते हैं और अपने निष्कर्षों को एक संगठित मंच पर प्रस्तुत करते हैं। यह मेला बच्चों की जिज्ञासा को बढ़ावा देने, अनुसंधान कौशल विकसित करने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए आयोजित किया जाता है। यदि हम बात करें बाल शोध मेले की अवधारणा की तो कहा जा सकता है कि बाल शोध मेला एक ऐसा मंच है, जहाँ बच्चे अपने परिवेश, विज्ञान, समाज और संस्कृति से संबंधित विषयों का अध्ययन करके अपने विचारों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करते हैं। यह बच्चों के लिए एक खुला मंच है, जहाँ वे किसी विषय पर गहराई से विचार कर सकते हैं, साक्ष्य एकत्र कर सकते हैं और अपने निष्कर्षों को रचनात्मक तरीके से साझा कर सकते हैं। बाल शोध मेले हेतु निम्न तरीका अपनाया जा सकता है:
इस प्रकार मेले में बच्चों को अनुसंधान करने, प्रयोग करने, प्रश्न पूछने, खोज करने और अपने निष्कर्षों को लिखित, मौखिक एवं दृश्य विधियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।
जैसा कि पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार जीपीएस चकरपुर में समय से हमारे जीपीएस उमरूखुर्द 2 के बच्चे उपस्थित हो गए।जैसे ही हम लोग वहां पहुंचे, स्कूल प्रांगण को गुब्बारों से सजाया जा चुका था और मुख्य द्वार पर बच्चे स्वयं ही आगंतुक अतिथियों का स्वागत कर रजिस्टर में उनका परिचय अंकित कर रहे थे, देख कर अच्छा लगा। हमारे स्कूल के बच्चे भी काफी उत्सुक थे इसलिए जोशी जी अजीम जी फाउंडेशन से मुलाक़ात के बाद बच्चों ने पूर्व निर्धारित जगह पर स्वयं तैयार किए गए चार्ट, पोस्टर और सामग्री को अवलोकन हेतु डिस्प्ले करना आरम्भ कर दिया।
    उपस्थित हुए अन्य विद्यालयों के बच्चों द्वारा भी अपने अपने काउंटरों पर सामग्री डिसप्ले अति उत्साह पूर्वक कर रहे थे। बच्चे इसलिए भी उत्साहित थे, क्योंकि जो सामग्री वे लाए थे वह बाल शोध पर आधारित उनका अपना तैयार किया गया था। जिसे बच्चों ने उद्देश्यों के पूर्व चयन के आधार पर तैयार किया था।बक्शी
 आखिर बाल शोध मेले के उद्देश्य क्या होने चाहिए ? यह एक विचारणीय प्रश्न है, क्योंकि जब तक हम उद्देश्यों का पूर्व निर्धारण नहीं करते तब तक हम उसे दशा और दिशा नहीं दे पाते।
बाल शोध मेले के आयोजन के पीछे कई महत्वपूर्ण उद्देश्य होते हैं, जो बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं। ये उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं—
1. अनुसंधान एवं खोज की प्रवृत्ति विकसित करना – बच्चों में प्रश्न पूछने, शोध करने और निष्कर्ष निकालने की आदत विकसित करना। 
2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना – किसी भी समस्या या विचार को तर्कसंगत और वैज्ञानिक तरीके से देखने एवं समझने की योग्यता बढ़ाना।
3. सृजनात्मकता और नवीनता को प्रोत्साहन देना – बच्चों को नए विचार सोचने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए प्रेरित करना।
4. टीम वर्क और नेतृत्व क्षमता विकसित करना – समूह में कार्य करने की भावना को बढ़ावा देना, जिससे वे सामूहिक रूप से किसी परियोजना पर काम कर सकें।
5. व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना – केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित न रहकर बच्चों को वास्तविक जीवन से जोड़ना और व्यावहारिक समझ विकसित करना।
6. संचार कौशल विकसित करना – अपनी बात को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने की कला सिखाना, जिससे वे आत्मविश्वास के साथ अपने निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकें।
7. स्थानीय और वैश्विक समस्याओं को समझना – पर्यावरण, समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य, विज्ञान और तकनीक से जुड़े मुद्दों को समझना और उनके समाधान पर विचार करना।
8. कैरियर और शोध में रुचि उत्पन्न करना – अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में बच्चों को प्रेरित करना, जिससे वे भविष्य में वैज्ञानिक, शिक्षक, समाजशास्त्री, इतिहासकार या अन्य शोधकर्ता बन सकें।

पूर्व निर्धारित उद्देश्य ही बाल शोध मेले की पूर्व तैयारी में सहायक होते हैं। बच्चे जो भी डिस्प्ले में जिन चीजों को सजाने का प्रयास कर रहे थे वह सामग्री कहीं न कहीं पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर ही अवसर प्रदान कर तैयार की गई थी।
 बच्चों को प्रेरित कर पाठ्य पुस्तकों के पाठों के आधार पर उनके अपने आसपास, उनके समाज, खेत खलिहान में उगने वाली फसलों, उत्सवों, पहनावे, बोली भाषा के शब्दों, खाद्य पदार्थों, सांस्कृतिक गीतों, गाथाओं, औषधीय पौधों , कृषि यंत्रों, जैविक खादों के बारे समझ विकसित करने हेतु स्वयं सोचकर प्रश्न निर्माण करना, जिसके आधार पर बच्चों ने अपने परिवार के सदस्यों और समाज के लोगों से जानकारी एकत्रित की, बच्चों में विभिन्न गुणों को विकसित करने में सहायक रहे। 
यदि हम बात करें कि आखिर बाल शोध मेले के प्रकार क्या क्या हो सकते हैं जिसके आधार पर सामग्री तैयार की जाती है तो बाल शोध मेलों को उनकी विषय-वस्तु और आयोजन के अनुसार विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है—
1. वैज्ञानिक शोध मेला
इसमें बच्चे वैज्ञानिक प्रयोगों, आविष्कारों, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य विज्ञान आदि पर शोध करते हैं और अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं।
2. सामाजिक शोध मेला
इसमें समाज से जुड़े मुद्दे जैसे— शिक्षा, बाल श्रम, ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सामाजिक न्याय आदि पर शोध किया जाता है।
3. ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक शोध मेला
इसमें बच्चे इतिहास, पुरातत्व, लोक संस्कृति, परंपराओं, भाषाओं, त्योहारों और ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन करके उन्हें प्रदर्शित करते हैं।
4. पर्यावरणीय शोध मेला
इस प्रकार के शोध मेले में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, कृषि, वन संरक्षण, जल संरक्षण और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर शोध किया जाता है।
5. गणित एवं तार्किक शोध मेला
गणितीय सूत्रों, पहेलियों, गणना पद्धतियों, तर्कशक्ति विकास से संबंधित शोध प्रस्तुत किए जाते हैं।
6. स्वास्थ्य और जीवनशैली शोध मेला
इसमें पोषण, व्यायाम, मानसिक स्वास्थ्य, बीमारियों की रोकथाम और स्वस्थ जीवनशैली पर अनुसंधान किए जाते हैं।

उपरोक्त आधार पर देखा जाय तो हमारे इन बच्चों ने जो सामग्री तैयार की थी वह कुछ कुछ सभी बिंदुओं को स्पर्श करने का प्रयास कर रही थी। और जो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने को अग्रसित थी।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बाल शोध मेले का मुख्य उद्देश्य बच्चों में अन्वेषण और रचनात्मकता की भावना को बढ़ावा देना है। लेकिन पढ़ाई से जोड़ते हुए उन्हें सीखने के अवसर देना उन शैक्छिक लक्ष्यों की ओर ले जाते है जिन्हें शिक्षा शास्त्रियों ने आवश्यक माना हैऔर इस प्रकार कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य निम्नलिखित हो सकते हैं—
1. बच्चों को अनुसंधान-आधारित शिक्षण से जोड़ना।
2. जिज्ञासा और नवीन सोच विकसित करना।
3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तार्किक विश्लेषण की क्षमता बढ़ाना।
4. बच्चों को टीम वर्क और नेतृत्व कौशल सिखाना।
5. व्यावहारिक समस्याओं के समाधान के लिए बच्चों को प्रेरित करना।
6. बच्चों में संचार कौशल और आत्मविश्वास को मजबूत बनाना।
7. शिक्षा को अधिक रोचक और प्रभावी बनाना।

इस तैयारी के दौरान और बाल शोध मेले के आयोजन के समय यह सब कुछ परिलक्षित हो रहा था।
जैसा कि प्रतिभागी विद्यालयों के उपस्थित हो जाने के बाद निर्धारित समय पर सभी बच्चे प्रांगण में लगी कुर्सियों पर सुशोभित हुए, साथ में अतिथियों के रूप में विभिन्न विद्यालयों के सम्मानित शिक्षक, शिक्षिका व अभिभावको ने इसे और शोभायमान बनाया। कार्यक्रम का शुभारंभ जीपीएस चकरपुर की प्रधानाध्यापिका मैडम जी ने संबोधित करके किया। उसके बाद कुमाऊनी परिधान में बच्चों ने मां शारदेय की वंदना और स्वागत गीत प्रस्तुत की।उसके बाद जीपीएस नौगांवनाथ से आए हमारे शिक्षक साथी मनोज कुमार शर्मा ने अति विस्तार से बाल शोध मेले के महत्व पर प्रकाश डाला।  उनकी विद्वत्ता व प्रस्तुतिकरण अनुकरणीय था। उन्होंने बताया कि बाल शोध मेले का महत्व क्या है और इसे क्यों आयोजित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाल शोध मेला शिक्षा का एक अभिनव तरीका है, जो पारंपरिक शिक्षण से अलग हटकर बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करता है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है—
1. सीखने की नई विधियाँ प्रदान करता है
पारंपरिक कक्षाओं में बच्चे अक्सर सिर्फ रटकर पढ़ते हैं, लेकिन शोध मेले में वे विषय को गहराई से समझते हैं, जिससे उनकी बौद्धिक क्षमता बढ़ती है।
2. अनुसंधान और समस्या समाधान कौशल को बढ़ावा देता है
शोध करना और समस्या को हल करने के लिए साक्ष्य एकत्र करना एक महत्वपूर्ण कौशल है, जो बाल शोध मेले के माध्यम से विकसित होता है।
3. प्रयोगात्मक एवं अनुभवात्मक शिक्षण को बढ़ावा देता है
बच्चे अपने प्रोजेक्ट में प्रयोग और अवलोकन करते हैं, जिससे उन्हें व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है।
4. बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाता है
अपने विचारों को दूसरों के सामने प्रस्तुत करने से बच्चों में आत्मविश्वास विकसित होता है, जो उनके भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
5. भविष्य के कैरियर के लिए मार्ग प्रशस्त करता है
शोध में रुचि लेने वाले बच्चे आगे चलकर वैज्ञानिक, समाजशास्त्री, इंजीनियर, शिक्षक, पर्यावरणविद् आदि के रूप में करियर बना सकते हैं।
6. सामाजिक और वैज्ञानिक सोच विकसित करता है
बच्चों में तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच विकसित करने से वे अपने समाज और पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक बनते हैं।

उसके बाद कुमाऊनी परंपरा पर आधारित कुछ और सांस्कृतिक कार्यक्रम उनके परिधान में हुए जो बच्चों में अपनी संस्कृति के प्रति लगाव को प्रदर्शित कर रहे थे।
इन सांस्कृतिक प्रोग्राम के बाद हमें निर्देश मिला कि सभी अभिभावक, अतिथि शिक्षक और प्रतिभागी शिक्षक काउंटर में जाकर बच्चों द्वारा तैयार किए गए विभिन्न सामग्रियों का अवलोकन करें और बच्चों से उनके अनुभव आधारित समझ को जानने का प्रयास करें ।सभी शिक्षक और अभिभावक एक-एक कर सभी काउंटरो पर गए और बच्चों से उनके द्वारा लाए गए चार्टों और विभिन्न सामग्रियों पर प्रश्न किया।जहां बच्चे बेहतरीन तरीके से अपने अनुभव साझा कर रहे थे । 
इस बाल शोध मेले में जीपीएस उम्र खुर्द सेकंड के बच्चों के द्वारा थारू संस्कृति पर आधारित वस्त्र आभूषण,भोज्य पदार्थ जैसे सूखी मछली से तैयार ड्राई फिश चटनी ( सिं द रा का नून) , गुलगुले, ढीस्सा फरा आदि व्यंजन बनाए गए थेबच्चों ने सभी के साथ  उनके बनाने की विधि व अन्य सामग्रियों पर अपने अनुभव साझा किए। उनके एक काउंटर पर बच्चों ने थारू समाज में उपयोग किए जाने वाले शब्द ,कृषि यंत्रों, धान की विभिन्न किस्म और विभिन्न मौसम में उगाई जाने वाले विभिन्न फसलों की जानकारी साझा की। वहीं दूसरे काउंटर पर घरों मेंउपयोग की जाने वाली विभिन्न औषधीय पौधों की जानकारी साझा की।
वहीं राजकीय प्राथमिक विद्यालय भुडाई के बच्चों द्वारा राया के पत्तों से बना पतोला और चीले प्रदर्शन हेतु लाय गए और जीपीएस चकरपुर के बच्चों द्वारा कुमाऊनी व्यंजन, परिधान,  बन रौत समुदाय का इतिहास और वर्तमान स्थिति, बन खंडी महादेव मंदिर का इतिहास, घरों में पानी की खपत का अध्ययन, भाषा शब्दावली, मोहन भोग और जैविक खाद का प्रदर्शन कर अपने-अपने अनुभव साझा कर रहे थे।
बाल शोध मेले को देखकर ऐसा लगा कि बच्चे बेहतरीन तरीके से उत्तर देने का प्रयास कर रहे थे।कार्यक्रम के अंत में सभी शिक्षकों ने आपस में अपने अनुभव साझा कर इस बाल शोध मेले में चार चांद लगा दिए।प्रतिभागी अभिभावकों कहना था कि उनकी याद मे ये पहला कार्यक्रम है जिसमें बच्चे इतनी आसपास से इतनी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं जो हमें भी पता नहीं थी | वहीं शिक्षकों का कहना था कि इस तरह की गतिविधियों से समझ मे आता है कि जिन बच्चों को हम कभी ये समझ लेते हैं कि ये जल्दी नहीं सीख पाएंगे वो भी कितनी बेहतर तरीके से जानकारी साझा का रहे हैं | इस तरह की प्रक्रियाएँ सभी बच्चों को आसानी से सीखने मे अवसर देती हैं | मेले के उपरांत शिक्षाओं एवं समुदाय की मेले संबंधी समीक्षा बैठक मे प्रतिभागी अध्यापकों का कहना था कि बाल शोध की प्रक्रिया ने बच्चों की लेखन, अभिव्यक्ति, खोजबीन और विषयों को गहराई से समझने की दक्षताओं को विकसित करने में मदद की। जिसने विद्यार्थियों को अनुभव आधारित शिक्षण, समूह कार्य और समस्या समाधान जैसी विधियों से मार्गदर्शन दिया। इस गतिविधि से बच्चों ने स्वतंत्र रूप से सोचने, अनुसंधान करने और अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का अभ्यास किया। आज के कार्यक्रम में 80 विद्यार्थियों, 14 शिक्षकों, 20 समुदाय के लोगों एवं आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने भाग लिया। 
 जिसमें विभिन्न 13 विद्यालयों से आए शिक्षक - कृष्णनंद भट्ट, राम निवास गंगवार, राजेश जोशी, सुनील कुमार, मनोज शर्मा, नवीन सिंह, अनुसूइया बिष्ट, कमला जोशी, कलावती बोरा, लीलावती कालोनी, देवकी रावत, सुभावती, कमला राठोर और संकुल प्रभारी सतीश वर्मा ने सहभागिता की।फाउंडेशन की तरफ से श्रेया और दिब्य प्रकाश ने भी कार्यक्रम में सहयोह एवं प्रतिभाग किया |


वाकई में इस तरह की प्रक्रियाएँ सभी विद्यालयों मे करनी चाहिए क्योंकि बाल शोध मेला बच्चों के बौद्धिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और रचनात्मक विकास का एक अनूठा मंच है। यह बच्चों में सीखने की एक नई संस्कृति विकसित करता है, जहाँ वे स्वयं प्रयोग करके, अवलोकन करके और निष्कर्ष निकालकर ज्ञान अर्जित करते हैं। इस तरह के शोध मेले बच्चों को मात्र एक विद्यार्थी नहीं, बल्कि भविष्य का वैज्ञानिक, समाज सुधारक, विचारक और नेतृत्वकर्ता बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
इसलिए, प्रत्येक विद्यालय और शैक्षिक संस्था को चाहिए कि वे नियमित रूप से बाल शोध मेले का आयोजन करें, जिससे बच्चे सीखने की इस नई विधि से लाभान्वित हो सकें और अपने ज्ञान तथा कौशल को और अधिक समृद्ध कर सकें।





 



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