थारू भाषा समर कैंप 2025 :थारू भाषा-संस्कृति संवर्धन की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल
थारू भाषा-संस्कृति संवर्धन की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल






— राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय खटीमा में आयोजित भाषा समर कैंप के चतुर्थ दिवस की अनूठी झलक
सांस्कृतिक जागरूकता और भाषाई विविधता के संरक्षण हेतु राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय खटीमा में चल रहे सात दिवसीय भाषा समर कैंप का चतुर्थ दिवस थारू भाषा और संस्कृति के संवर्धन को समर्पित रहा। यह दिन न केवल बच्चों के लिए एक आनंददायी अनुभव था, बल्कि यह थारू अस्मिता की गूंज बनकर सामने आया।
कार्यक्रम की शुरुआत बच्चों को आनंदम ध्यान केंद्रित करने वाली गतिविधियों से हुई, जिसमें उन्होंने एकाग्रता, भाव और तालमेल को सहजता से सीखा। इसके बाद जब बच्चों ने थारू बोली में अपने अनुभव और कहानियाँ साझा कीं, तो लगा मानो भाषा फिर से साँस लेने लगी हो, और मिट्टी की वह सौंधी खुशबू कक्षा-कक्ष में फैल गई जिसे अक्सर हम आधुनिकता की दौड़ में खो बैठते हैं।
इसके बाद थारू भोजन पर चर्चा हुई—बच्चों ने थारू बोली में पारंपरिक व्यंजनों की विधियाँ जानी और थारू बोली के शब्दों से पकते पकते स्वाद की एक अद्भुत थाली बन गई। इसके बाद रंग, ताल और सुरों का संगम देखने को मिला जब बच्चों ने थारू गीतों की धुन पर नृत्य किया। इस समरसता ने यह संदेश दिया कि संस्कृति जोड़ती है, तोड़ती नहीं।
इस अवसर पर थारू समाज के प्रबुद्ध जन, श्रद्धेय श्री चरणजीत सिंह राणा जी ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से बच्चों को विशेष प्रेरणा दी। उन्होंने बच्चों को थारू रीति-रिवाज, बोलचाल के शब्द, होली गीत की धुन, गीतों और पारंपरिक झिंझी ,हन्ना गीत' की धुनों की जानकारी दी। जब बच्चों ने ताल से ताल" मिलाकर नृत्य किया, तो वह दृश्य मानो थारू परंपरा की जीवंत झलक बन गया।
राणा जी ने बच्चों को यह भी बताया कि हमारी भाषा, हमारे गीत, हमारी रीतियाँ केवल अतीत की बातें नहीं हैं—वे वर्तमान की धड़कन हैं और भविष्य की आशा भी। उनके विचारों ने बच्चों में एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास भर दिया।
कार्यक्रम के अंत में विद्यालय की ओर से थारू समुदाय का पारंपरिक व्यंजन ‘कतरा’ तैयार किया गया, जिसे सभी बच्चों ने बड़े चाव से खाया और उसकी तारीफ की। स्वाद के माध्यम से संस्कृति का ऐसा स्वाद शायद ही कहीं और मिल सके।
यह दिवस हमें यह सिखा गया कि जब समाज के ज्ञानी, अनुभवी और संस्कृति से जुड़े लोग बच्चों के बीच आते हैं, तो भाषा और परंपरा केवल सिखाई नहीं जाती, वे जीने लगती हैं। थारू समाज की भाषा और संस्कृति के इस हस्तांतरण की प्रक्रिया में यह प्रयास एक मील का पत्थर बन गया।
यदि इसी तरह हर विद्यालय, हर शिक्षक और हर समाजसेवी इस अभियान में जुड़ें, निश्चित ही हमारी थारू भाषा, बोली और संस्कृति को वह सम्मान और स्थायित्व मिलेगा, जिसकी वह वास्तविक रूप से अधिकारी है।
– थारू समाज की ओर से यह एक भावुक और प्रेरणास्पद निवेदन है – आइए, अपनी जड़ों से जुड़ें और भावी पीढ़ियों को अपनी अस्मिता की माटी सौंपें। 🌿✨
इस अवसर में आज समर कैंप में 28 बच्चे , नोडल प्रभारी श्री गोकुल कपड़ी जी, विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सोबरन सिंह राणा जी, संदर्भ दाता के रूप में नवीन सिंह, गोपाल सिंह राणा जी और अतिथि संदर्भ दाता श्री चरनजीत सिंह राणा जी उपस्थित रहे।
🖋️ नवीन सिंह
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