चुंबक का जादू: एक विज्ञान बाल कहानी


 चुंबक का जादू: एक विज्ञान बाल कहानी 
✍️ विद्या विज्ञान 

राजू एक जिज्ञासु बच्चा था। उसे हर चीज़ के पीछे छिपे कारण जानने का बहुत शौक था। एक दिन, वह अपने कमरे में खेल रहा था जब उसने देखा कि उसके कुछ खिलौनों के हिस्से आपस में चिपक रहे थे। "ये कैसे हो सकता है?" उसने सोचा। उसने अपनी गाड़ियों के पहियों को देखा, जो आपस में चिपके हुए थे, और उसे कोई समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है।

वह अपनी दादी के पास भागा और उनसे पूछा, "दादी, ये मेरे खिलौने एक-दूसरे से क्यों चिपक रहे हैं?"

दादी मुस्कराईं और बोलीं, "बेटा, यह चुंबक का जादू है। आओ, मैं तुम्हें समझाती हूँ।"

दादी ने अलमारी से एक छोटा सा चुंबक निकाला और उसे राजू के हाथ में दिया। "यह एक चुंबक है," उन्होंने कहा, "यह लोहे की चीजों को अपनी ओर खींचता है। तुम्हारे खिलौनों में छोटे-छोटे लोहे के टुकड़े लगे हैं, इसलिए ये चुंबक से चिपक रहे हैं।"

राजू ने पहले कभी चुंबक के बारे में नहीं सुना था। वह पूरी तरह चकित था। उसने चुंबक को अपने चारों ओर की चीजों के पास ले जाकर देखना शुरू किया। जैसे ही उसने चुंबक को अपने स्टील के पानी की बोतल के पास लाया, बोतल के ढक्कन ने चुंबक को पकड़ लिया। राजू हंसने लगा, "वाह! दादी, यह तो सचमुच जादू जैसा है!"

दादी ने समझाया, "चुंबक में एक अदृश्य ताकत होती है, जिसे हम चुंबकीय बल कहते हैं। यह केवल धातु की कुछ विशेष चीज़ों, जैसे लोहे, निकेल और कोबाल्ट को खींच सकता है।"

राजू की जिज्ञासा अब और बढ़ गई थी। उसने अपने घर में एक खोज शुरू की। वह हर चीज़ को चुंबक के पास ले जाकर देखता कि क्या वह उससे चिपकती है या नहीं। उसने देखा कि लकड़ी, प्लास्टिक, और कपड़े की चीज़ें चुंबक से नहीं चिपकतीं, लेकिन स्टील के चम्मच, किचन का तवा और उसकी साइकिल की चेन तुरंत चुंबक से चिपक जाती थीं।

वह दौड़कर दादी के पास गया और बोला, "दादी, क्या दुनिया में हर चीज़ चुंबक से चिपक सकती है?"

दादी मुस्कराई और बोली, "नहीं बेटा, चुंबक केवल कुछ खास धातुओं को ही खींचता है। और सभी धातुएं भी चुंबक से नहीं चिपकतीं। सोना, चांदी, एल्यूमीनियम जैसे धातु चुंबक से नहीं चिपकते।"

राजू अब विज्ञान में और भी ज्यादा रुचि लेने लगा। वह रोज़ नए-नए प्रयोग करता और दादी से सवाल पूछता। एक दिन उसने सोचा, "अगर चुंबक में इतनी ताकत होती है, तो क्या मैं इसका इस्तेमाल और भी मजेदार खेलों में कर सकता हूँ?"

उसने एक कागज़ की नाव बनाई और उसके नीचे एक छोटा लोहे का टुकड़ा चिपका दिया। फिर उसने चुंबक को नाव के नीचे से घुमाना शुरू किया, और नाव पानी के ऊपर चलने लगी जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे खींच रहा हो। राजू खुशी से चिल्लाया, "दादी, देखो! मेरी नाव बिना हाथ लगाए चल रही है!"

दादी ने हंसते हुए कहा, "तुमने चुंबक के जादू को सही मायने में समझ लिया है, राजू। तुम इसे समझने के साथ खेल भी रहे हो, जो सबसे अच्छी बात है।"

कुछ दिनों बाद, राजू ने स्कूल में अपनी विज्ञान प्रदर्शनी के लिए चुंबक के प्रयोगों का एक स्टॉल लगाया। उसने अपने सभी दोस्तों को बताया कि कैसे चुंबक काम करता है और उसने उन्हें दिखाया कि कैसे चुंबक का उपयोग करके चीज़ें खींची जा सकती हैं। उसके दोस्तों ने भी उसे चमत्कार समझा और उसके स्टॉल पर बहुत भीड़ जमा हो गई।

उस दिन राजू ने न केवल चुंबक का जादू सीखा, बल्कि उसे दूसरों को सिखाने का आनंद भी महसूस किया। उसने समझा कि जब हम कुछ सीखते हैं और उसे दूसरों के साथ बाँटते हैं, तो वह ज्ञान और भी अधिक बढ़ जाता है।


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