कहानी: “फसलों का उत्सव: एकता और ज्ञान की कथा”**
**कहानी: “फसलों का उत्सव: एकता और ज्ञान की कथा”**
: नवीन सिंह राणा
शहर से कहीं दूर पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा सा गाँव था, जिसका नाम था "शांतिपुर।" इस गाँव की खास बात यह थी कि यहाँ साल भर अलग-अलग फसलों के त्यौहार मनाए जाते थे। हर मौसम के साथ गाँव में एक नया त्यौहार आता, और गाँव के लोग पूरे जोश और उल्लास के साथ इसे मनाते। ये त्यौहार केवल फसलों की उपज का जश्न नहीं थे, बल्कि आपसी प्रेम, भाईचारे और ज्ञान के आदान-प्रदान के पर्व भी थे।
साल की शुरुआत होती थी बसंत ऋतु से। इस मौसम में पूरे गाँव के खेतों में सरसों के पीले फूल खिल जाते, और यह नज़ारा किसी सुनहरी चादर जैसा लगता। बसंत पंचमी का त्यौहार गाँव में "फूलों की होली" के रूप में मनाया जाता था। इस दिन सभी लोग पीले वस्त्र पहनते, और गाँव के बीच में बने बड़े मैदान में इकट्ठा होते। वहाँ पर फूलों की पंखुड़ियों से होली खेली जाती थी। बच्चे, बूढ़े, सभी एक-दूसरे पर फूल बरसाते, और हवा में गीतों की गूँज सुनाई देती। इस दिन गाँव की महिलाएँ भी पारंपरिक गीत गाते हुए नृत्य करतीं, जिससे पूरा माहौल उल्लासमय हो जाता।
इस त्यौहार का मकसद था बसंत के आगमन का स्वागत करना और गाँव के लोगों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द्र को बढ़ावा देना। इस दिन गाँव के बुजुर्ग युवा पीढ़ी को प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करने का महत्व सिखाते थे। वे बताते थे कि जैसे फूल अपने रंग और खुशबू से संसार को सुंदर बनाते हैं, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में प्रेम और करुणा को फैलाना चाहिए।
गर्मी की शुरुआत के साथ आता था "धान का त्योहार।" इस समय गाँव के खेतों में धान की फसल लगाई जाती थी। यह त्यौहार गाँव के सभी लोगों के लिए बहुत खास होता था। दिन की शुरुआत होती थी सुबह-सुबह गाँव के मंदिर में पूजा से। इसके बाद सभी लोग मिलकर खेतों में जाते और मिलजुल कर धान की रोपाई करते। इस काम में गाँव के बच्चे, महिलाएँ और बुजुर्ग सब हिस्सा लेते थे।
धान की रोपाई के बाद, गाँव के लोग मिलकर अपने खेतों के किनारे पर एक बड़ा भोज आयोजित करते। वहाँ पर मटका फोड़, रस्साकशी और ढोलक की थाप पर नृत्य जैसी गतिविधियाँ होतीं। इस त्यौहार का उद्देश्य था मेहनत और सहयोग की भावना को मजबूत करना। गाँव के लोग एक-दूसरे की मदद करते हुए इस बात को समझते थे कि अगर वे मिलकर काम करेंगे तो हर मुश्किल को पार कर सकते हैं।
बरसात का मौसम आते ही गाँव में "हरियाली तीज" का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता था। इस दिन महिलाएँ हरे वस्त्र पहनकर भगवान शिव और पार्वती की पूजा करतीं। गाँव के लोग बारिश का स्वागत करते, क्योंकि यह फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय होता था।
इस दिन गाँव के बच्चों के लिए विशेष कार्यशालाएँ आयोजित की जातीं, जहाँ उन्हें खेती और किसानी के बारे में सिखाया जाता। बुजुर्ग किसान अपने अनुभव साझा करते, और बच्चों को यह बताते कि कैसे सही समय पर फसल बोने और उसकी देखभाल करने से अच्छी उपज होती है।
गाँव के बीचों-बीच एक बड़ा झूला लगाया जाता, जिस पर महिलाएँ गीत गाते हुए झूलतीं। इस त्योहार ने गाँव की महिलाओं को भी एक साथ आने का मौका दिया, जहाँ वे अपने अनुभवों को साझा करतीं और नई पीढ़ी को सिखातीं कि कैसे एक साथ मिलकर काम करने से हर काम आसान हो जाता है।
शरद ऋतु की शुरुआत के साथ आता था "नवनीत पर्व,"अर्थात कृष्ण जन्माष्टमी ।जब गन्ने और चावल की फसलें खेत में लहलहाती होती थीं। इस त्यौहार का विशेष आकर्षण होता था "नवनीत," यानि मक्खन, जिसे गाँव की महिलाएँ बड़े प्यार से तैयार करती थीं।
इस दिन, गाँव के सभी लोग मिलकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते, और फिर ताजे मक्खन, गुड़, और चावल के पकवान बनाते। एक बड़े भोज का आयोजन किया जाता, जहाँ हर कोई एक साथ बैठकर भोजन करता। गाँव के मुखिया इस अवसर पर ज्ञान और अनुभव साझा करते, और बताते कि कैसे एक अच्छा किसान हमेशा अपनी फसल के साथ-साथ अपने समाज की भी भलाई का ख्याल रखता है।
सर्दियों के अंत में "मकर संक्रांति" का त्यौहार मनाया जाता था। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, और इसे नए साल का स्वागत करने का पर्व भी माना जाता है। गाँव के लोग तिल-गुड़ के लड्डू बनाते, और आपस में बाँटते हुए कहते, "तिल गुड़ खाओ, मीठा बोलो।" यह त्यौहार आपसी प्रेम और एकता को और भी मजबूत बनाता था।
इस दिन पतंगबाजी भी होती, जहाँ गाँव के बच्चे और बड़े एक साथ आकाश में रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते। पतंगों की तरह ही गाँव के लोग भी अपने सपनों को ऊँचा उड़ाने की प्रेरणा लेते।
शांतिपुर के इन त्यौहारों ने गाँव को एक सूत्र में पिरो रखा था। यहाँ के लोग समझते थे कि चाहे मौसम कोई भी हो, चाहे फसल कैसी भी हो, अगर वे एकजुट रहेंगे, तो हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं। इन त्यौहारों ने गाँव के लोगों को यह सिखाया कि आपसी प्रेम, सहयोग, और ज्ञान ही किसी समाज की असली ताकत होती है।
शांतिपुर के लोग अपने बच्चों को भी यही सिखाते थे कि मेहनत, एकता, और प्रकृति के प्रति सम्मान से ही जीवन को सफल और खुशहाल बनाया जा सकता है। इस तरह, फसलों के ये त्यौहार केवल पर्व नहीं थे, बल्कि एकता, प्रेम और ज्ञान का प्रतीक थे, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस गाँव को एकजुट और समृद्ध बनाए रखते थे।
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