बाल कहानी : "चिंटू-मिंटू खरगोश और कॉलोनी का सबक"🖋️ नवीन सिंह राणा

बाल कहानी : "चिंटू-मिंटू खरगोश और कॉलोनी का सबक"
🖋️ नवीन सिंह राणा

बहुत दूर एक घने और हरे-भरे जंगल में, एक सुंदर सी खरगोश कॉलोनी थी। वहाँ छोटे-बड़े खरगोश अपनी-अपनी प्यारी-प्यारी बिलों में रहते थे। बिलों की बनावट इतनी सुंदर और अनोखी थी कि हर कोई अपने घर पर गर्व करता। कुछ खरगोशों ने अपने घरों के ऊपर घास की छतें बनाई थीं तो किसी ने फूलों की क्यारियों से सजावट की थी। सूरज की किरणें जब पेड़ों से छनकर उन बिलों पर पड़तीं, तो पूरी कॉलोनी सुनहरी चमक से भर जाती।

इस कॉलोनी में दो खास दोस्त रहते थे — चिंटू और मिंटू।
वे  एक-दूसरे के बिना अधूरे लगते थे। सुबह-सुबह ओस में भीगी घास पर टहलना, दूर तक फैले गाजर के खेतों में कूदना, और शाम को बैठकर सितारों के नीचे बातों में खो जाना, यही उनकी दिनचर्या थी।

गाजर – हाँ, वही लाल-लाल रसीली गाजरें – इन दोनों की सबसे बड़ी कमजोरी थीं।
चिंटू जब कोई नई गाजर खोज लाता, तो मिंटू को बुलाकर आधी बाँट लेता।
मिंटू भी अपने खेत की सबसे मीठी गाजर चिंटू के लिए सहेजकर रखता।
सिर्फ गाजर ही नहीं, वे एक-दूसरे की खुशियों और परेशानियों के भी साथी थे।

एक दिन जंगल में कोयल की मीठी आवाज़ के साथ एक बड़ी मीटिंग बुलाई गई।
बिलकुल जंगल की संसद जैसी – सब खरगोशों की उपस्थिति में एक समिति बनाने का प्रस्ताव रखा गया, जिससे कॉलोनी में साफ-सफाई, सुरक्षा और त्योहारों की योजना मिल-जुलकर बनाई जा सके।

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, और अन्य पदों के लिए चुनाव हुआ।
सभी खरगोशों ने खुश होकर थोड़ा-थोड़ा धन दिया ताकि कॉलोनी के लिए "साझा कोष" बन सके।

अब बारी आई कॉलोनी का नाम रखने की।

बहुतों ने सुझाव दिए – "गाजरवन", "हरितबिल", "नीलकुंज", लेकिन अंत में कॉलोनी का नाम रखा गया — “खरगोशपुर”।
यह नाम चिंटू को बिलकुल पसंद नहीं आया। वह चाहता था कि नाम कुछ और होता, शायद “गाजरग्राम”।

इतना ही नहीं, चिंटू को लगा कि पैसे इकट्ठा करना ज़रूरी नहीं था।
उसने मिंटू से भी कहा,
“तुम मत दो पैसे। ये सब दिखावा है। जंगल में हमें इन चीज़ों की क्या ज़रूरत?”

लेकिन मिंटू ने विनम्रता से कहा,
“चिंटू, यह सब हम सबकी भलाई के लिए है। जब बारिश में बिल भर जाए या शिकारी पास आएं, तो एकजुट होना ज़रूरी है। विज्ञान भी कहता है कि समूह में जीवों का सर्वाइवल रेट ज़्यादा होता है।”

चिंटू नाराज हो गया।
उसने मिंटू से बोलना बंद कर दिया।
ना सुबह की सैर, ना गाजर की साझेदारी, ना तारों के नीचे की बातों की दुनिया।

मिंटू बहुत दुखी हुआ, पर वह जानता था –
“व्यक्तिगत संबंधों और सामाजिक दायित्वों में फर्क होता है

मिंटू हमेशा यह समझता था कि क्या यह सही है। मैंने कोई गलती की।क्या इस तरह से नाराज होना सहीहै । लेकिन  चिंटू ने अपने सारे व्यक्तिगत संबंधों को कॉलोनी क कारण कमजोर कदिया।

 चिंटू का बिल थोड़ी दूर था। बारिश ने वहाँ पहुँचने का रास्ता बंद कर दिया। 

वह अकेला फँसा रह गया। डर, ठंड और भूख से उसका बुरा हाल हो गया।
उसे समझ आ गया कि अगर आज मिंटू होता, तो उसके लिए रास्ता बनाता, उसे बचाता।

और तभी –
झाड़ियों के पीछे से मिंटू निकला, उसकी पीठ पर एक बड़ा पत्ता और कुछ गाजरें थीं।
“चलो चिंटू, देर हो गई, लेकिन दोस्त को तो मैं अकेला नहीं छोड़ सकता।”

चिंटू की आँखें भर आईं।
उसने मिंटू को गले लगा लिया और कहा –
“मुझे माफ़ कर दो मिंटू, मैं समझ नहीं पाया कि दोस्ती गाजर बाँटने से भी ज़्यादा गहरी चीज़ है। और समाज से कटकर कोई अकेला कब तक रह सकता है।

अब वह कॉलोनी  गाजर उत्सव और नए बिल निर्माण के काम में सबसे आगे रहता।
उसने खुद एक सौर ऊर्जा से चलने वाली टॉर्च बनाई, जिससे रात में गश्त करना आसान हो गया।

प्रकृति, विज्ञान और आपसी सहयोग की समझ ने पूरे खरगोश समाज को एक नई दिशा दी।


🖋️नवीन सिंह राणा



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