लोक संस्कृति दिवसइंद्रमणि बडोनी: उत्तराखंड के गांधी
लोक संस्कृति दिवस
इंद्रमणि बडोनी: उत्तराखंड के गांधी
इंद्रमणि बडोनी, जिन्हें "उत्तराखंड के गांधी" कहा जाता है, उत्तराखंड के इतिहास में एक ऐसा नाम हैं, जो न केवल राजनीतिक नेतृत्व बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक सुधारों के प्रतीक भी हैं। उनका जन्म 24 दिसंबर 1925 को टिहरी गढ़वाल के अखोड़ी गांव में हुआ। उनके पिता श्री सुरेशानंद और माता श्रीमती कलदी देवी ने उन्हें मूल्यपरक शिक्षा और संस्कार दिए। इंद्रमणि ने नैनीताल और देहरादून से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और 1949 में डीएवी पीजी कॉलेज, देहरादून से स्नातक की डिग्री पूरी की।
प्रारंभिक जीवन और सामाजिक सक्रियता
19 वर्ष की आयु में उनका विवाह सुरजी देवी से हुआ और आजीविका की तलाश में वे बंबई गए, लेकिन जल्दी ही अपने गांव लौट आए। उनका सार्वजनिक जीवन 1953 में शुरू हुआ, जब गांधीवादी कार्यकर्ता मीरा बहन ने उनके गांव का दौरा किया। 1961 में वे ग्राम प्रधान बने और विकास खंड जखोली के प्रमुख के रूप में कार्य किया। उनका राजनीतिक सफर 1967 में शुरू हुआ, जब उन्होंने पहली बार देवप्रयाग से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीता।
राजनीतिक सफर और चुनौतियां
1969 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुने गए, और 1977 में उन्होंने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में भारी जीत दर्ज की। यहां तक कि जनता पार्टी की लहर के बावजूद, उन्होंने कांग्रेस और जनता पार्टी के उम्मीदवारों को हराकर अपनी क्षमता का परिचय दिया। हालांकि, उनका राजनीतिक जीवन केवल सफलताओं से नहीं भरा था। 1974 में गोविंद प्रसाद गैरोला से और 1989 में ब्रह्म दत्त से संसदीय चुनाव हारने के बाद भी उनकी ऊर्जा और उत्तराखंड के लिए प्रतिबद्धता कम नहीं हुई।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में योगदान
इंद्रमणि बडोनी ने 1979 से ही उत्तराखंड को एक अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1994 में उन्होंने पौड़ी में आमरण अनशन शुरू किया, जो उत्तराखंड आंदोलन के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय बना। सरकार ने उन्हें मुजफ्फरनगर जेल में डाल दिया, लेकिन इससे आंदोलन और मजबूत हुआ। बडोनी ने अपनी नेतृत्व क्षमता से आंदोलन को संगठित रखा और विभाजित गुटों को एकजुट किया।
उनकी निष्ठा, अहिंसक विचारधारा और साधारण लेकिन प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण, द वाशिंगटन पोस्ट ने उन्हें "माउंटेन गांधी" कहा। उनकी यह विशेषता उन्हें न केवल एक राजनेता बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक आदर्श बनाती है।
उत्तराधिकार और सम्मान
18 अगस्त 1999 को ऋषिकेश के विठ्ठल आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका जीवन संघर्षों, चुनौतियों और बलिदानों से भरा रहा, लेकिन उनकी उपलब्धियां और आदर्श उत्तराखंड के हर व्यक्ति को प्रेरित करती हैं।
इंद्रमणि बडोनी न केवल उत्तराखंड राज्य आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत थे, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति, परंपरा और मूल्यों के संरक्षक भी थे। लोक संस्कृति दिवस पर उनका स्मरण करना न केवल उनके योगदान का सम्मान है, बल्कि हमारी जड़ों को मजबूत करने और संस्कृति को जीवंत रखने की प्रेरणा भी है।
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