उदयन वाजपेई जी: एक विचार


श्री धर्मपाल गंगवार जी
प्रधानाध्यापक
जी की कलम से 
एक लेख 



उदयन वाजपेई जी

आज बड़ा दिन है। उदयन जी को सुनकर, आज का दिन अपने लिए तो बहुत बड़ा दिन बन गया। बचपन में हम आज के दिन को इसी नाम से जानते थे। बड़ा दिन। ऐसा उदयन जी ने भी कहा। उनके दूसरे ही वाक्य ने चौंकाया कि आज मित्र के देवता होरस का जन्मदिन है, ईसा तो बहुत बाद में आए।
 साहित्य क्या करता है? क्या करती हैं कलाएं? विषय पर उदयन जी को सुनते हुए दुनिया बौनी नजर आ रही थी। वे मिश्र, यूनान, ईरान, मद्धेशिया, यूरोप और भारत कहां-कहां नहीं गए। साहित्य और कला पर इतना वृहद और गहरा व्याख्यान इससे पहले मैंने कभी नहीं सुना। उनकी शब्दावली कमाल की थी। प्रेक्षा ग्रह, तादात्म, स्वा विवेक, हर्षित, करुणा, ध्यान जैसे शब्द लगातार अपनी ओर ध्यान खींचते रहे। उन्होंने कृष्ण और यशोदा का जिक्र किया। प्लूटो और सुकरात का जिक्र किया। 20वीं सदी के महान विचारक रविंद्र नाथ टैगोर तथा गांधी का जिक्र किया। दुष्यंत और शकुंतला का जिक्र किया। सोती सुंदरी का जिक्र किया। इतने कम समय में इतनी लंबी यात्रा आश्चर्यचकित करता है। उन्होंने कहा समाज शब्द कलाओं की ही दुनिया से आया है। नाट्यशास्त्र को दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। प्रेक्षा ग्रह में बैठे हुए लोग सामाजिक कहलाते हैं। जो सब की खुशी में खुश होते हैं दुख में दुखी होते हैं। उन्होंने कहा जो काम साहित्य कर सकता है वह गणित और विज्ञान नहीं कर सकते हैं। टेक्नोलॉजी तो बिल्कुल ही नहीं कर सकती। समाज को जोड़ने का सूत्र करुणा है। समाज से साहित्य और कला हटा दीजिए तो जो हाल शरीर से लहू निकल जाने पर होता है वहीं हाल समाज का हो जाएगा। आज टेक्नोलॉजी के जमाने में मनुष्य अकेला है। वह इतना अकेला कभी नहीं था जब से यह दुनिया बनी है। मल्टीनेशनल कंपनियां और टेक्नोलॉजी मनुष्य को साहित्य और कला से दूर कर रहे हैं। पशु पक्षियों यहां तक कि पेड़ों का भी विवेक होता है। मनुष्य सबसे विवेकवान प्राणी है। लेकिन आज वह स्वविवेक खोता जा रहा है। उसे सुनने की, ध्यान करने की आदत नहीं है। उन्होंने कहा साहित्य आपको वह ताकत देता है जिससे आप खुद से खुद को देख सकें। उन्होंने कहा विज्ञापन हमारे विवेक को नष्ट करता है। हमारा ध्यान छोटे से छोटा होता चला जाता है। ध्यान टुकड़ा- टुकड़ा हो जाता है। चूर-चूर हो जाता है। हमने राजनीति को प्रश्नआंकित करने की शक्ति खो दी है। हम अधूरे से जी रहे हैं। हमारा विवेक खो दिया गया है। विवेक संपन्न होना ही तो मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि हम साहित्य और कला से गहरा संबंध बना पाते हैं तो हमारे ध्यान लगाने की क्षमता बढ़ जाती है। अपना नैतिक और सौंदर्य बोध स्वयं होने लगता है। साहित्य की कोई कलाकृति पढ़ने के बाद हमारा संसार को थोड़ी देर के लिए ही सही देखने का नजरिया बदल जाता है। संसार कुछ अलग सा लगने लगता है कुछ ज्यादा सुंदर ज्यादा सुहावना। लुगदी, व घटिया साहित्य हमारा ध्यान हटाता है। इससे बचें।
कहां तक लिखा जाए। आज का बेविनार बहुत ही शानदार रहा। अपने लिए तो बहुत ज्यादा ही शानदार।
उदयन जी को सुनबाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।


श्रीमान जी का बहुत बहुत धन्यवाद 

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