भारतीय लिपि: नागरी का विकास

भारतीय लिपि: नागरी का विकास

भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को समझने के लिए नागरी लिपि का अध्ययन अनिवार्य है। भारतीय लिपियों के विकास की कहानी सभ्यता के विकास से जुड़ी है। नागरी लिपि, जिसे आज देवनागरी के नाम से जाना जाता है, संस्कृत, हिंदी, मराठी और कई अन्य भारतीय भाषाओं की आधारभूत लिपि है। यह लेख नागरी लिपि के विकास की ऐतिहासिक यात्रा पर प्रकाश डालता है।

नागरी लिपि का प्रारंभिक विकास

नागरी लिपि का मूल स्रोत ब्राह्मी लिपि मानी जाती है, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य में प्रचलित थी। अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी लिपि का उपयोग हुआ, जो भारतीय लिपियों की जननी है। समय के साथ, यह लिपि विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं और उच्चारण के अनुसार परिवर्तित होती रही।

कुशाण और गुप्त काल में परिवर्तन

कुशाण और गुप्त काल (200 ईस्वी से 600 ईस्वी) में ब्राह्मी लिपि से नई लिपियों का विकास हुआ। नागरी लिपि का प्रारंभिक रूप इसी समय उभरा। गुप्तकालीन अभिलेखों में पाए जाने वाले अक्षर आधुनिक नागरी लिपि की नींव माने जा सकते हैं।

नागरी लिपि का व्यवस्थित रूप

7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच, नागरी लिपि का स्वरूप अधिक सुव्यवस्थित और स्पष्ट हुआ। यह काल चंदेल, राष्ट्रकूट और पल्लव राजवंशों का था, जिनके संरक्षण में नागरी लिपि को व्यापक रूप से अपनाया गया। इस समय 'नागरी' नाम प्रचलन में आया, जो 'नगरीय' या 'शहरी' का संकेतक है।

मध्यकाल में नागरी लिपि का उत्कर्ष

10वीं से 12वीं शताब्दी में नागरी लिपि उत्तर भारत में प्रमुख लिपि बन गई। इस काल में धार्मिक ग्रंथों, साहित्य और अभिलेखों की रचना में नागरी का उपयोग बढ़ा।

आधुनिक काल और देवनागरी

19वीं और 20वीं शताब्दी में देवनागरी लिपि का मानकीकरण हुआ। हिंदी और संस्कृत साहित्य के पुनर्जागरण के साथ ही इस लिपि का उपयोग व्यापक हुआ। स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने इसे आधिकारिक रूप से हिंदी भाषा के लिए स्वीकार किया।

नागरी लिपि की विशेषताएँ

1. ध्वन्यात्मकता: प्रत्येक अक्षर का उच्चारण उसके ध्वनि प्रतीक के अनुसार होता है।


2. व्यवस्थित संरचना: स्वर और व्यंजनों का स्पष्ट विभाजन।


3. संगीतात्मकता: स्वर और वर्णों के मेल से लिपि में लय और ताल बनता है।



निष्कर्ष

नागरी लिपि केवल लेखन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता की आत्मा है। इसका विकास भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास का दर्पण है। आधुनिक भारत में, नागरी लिपि केवल प्राचीनता की धरोहर नहीं, बल्कि आज भी संचार और ज्ञान का महत्वपूर्ण माध्यम है।

संदर्भ

इस लेख में शामिल जानकारी तस्वीर में प्रदर्शित "Development of Indian Scripts: Nagari" के क्रम और इतिहास पर आधारित है।


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