कृष्ण जन्माष्टमी: नन्हे मटकी का सफर**कृष्ण जन्माष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

** कृष्ण जन्माष्टमी: नन्हे मटकी का सफर**
:नवीन सिंह राणा 
एक छोटे से गांव में एक नन्हा लड़का मटकी रहता था। मटकी का नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि उसे दही और मक्खन बहुत पसंद था। उसकी दादी उसे हमेशा भगवान कृष्ण की कहानियां सुनाया करती थीं। मटकी को भगवान कृष्ण के माखन चुराने की कहानी सबसे ज्यादा पसंद थी। जब भी दादी यह कहानी सुनातीं, मटकी की आंखें खुशी से चमक उठतीं, और वह सोचता, "काश मैं भी एक दिन कृष्ण जी की तरह माखन चुरा पाऊं।"

जन्माष्टमी का पर्व पास आ रहा था और गांव में सब लोग बहुत उत्साहित थे। गांव के बड़े-बुजुर्ग मंदिर को सजाने में लगे थे, महिलाएं विशेष पकवान बना रही थीं, और बच्चे अपनी-अपनी मटकी सजाने में व्यस्त थे। मटकी भी अपनी मटकी को सजाने के लिए बड़ी मेहनत कर रहा था। उसने अपनी मटकी को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया और उसमें माखन भरने के सपने देखे।

जन्माष्टमी की रात आई। पूरा गांव भगवान कृष्ण के जन्म की तैयारियों में जुट गया। मंदिर में झूला सजाया गया, जिस पर भगवान कृष्ण की मूर्ति को रखा गया था। लोग बारी-बारी से उस झूले को झुला रहे थे और कृष्ण भजन गा रहे थे। मटकी भी वहां पहुंचा और अपनी छोटी मटकी को भगवान कृष्ण के चरणों में रख दिया।

रात के बारह बजते ही, पूरे गांव में ढोल-नगाड़ों की ध्वनि गूंज उठी। यह कृष्ण भगवान के जन्म का समय था! सबने मिलकर "नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की!" का जयकारा लगाया। मटकी की आंखों में चमक आ गई। वह सोचने लगा, "अब मैं भी अपनी मटकी लेकर माखन चुराने जाऊंगा, जैसे भगवान कृष्ण किया करते थे।"

लेकिन मटकी जानता था कि उसे माखन चोरी करने के लिए सबसे पहले अपनी हिम्मत दिखानी होगी। गांव के लड़कों ने मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता रखी थी। एक ऊंचे स्थान पर मटकी टांगी गई थी, जिसमें दही और मक्खन भरा हुआ था। मटकी के दोस्त भी वहां थे, और सब बड़े उत्साह के साथ मटकी फोड़ने की कोशिश कर रहे थे।

मटकी ने भी अपनी हिम्मत जुटाई और मटकी फोड़ने की टोली में शामिल हो गया। सारे बच्चे एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर मटकी तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे। मटकी सबसे ऊपर चढ़ गया और अपने छोटे से हाथ से मटकी पर वार किया। मटकी टूटी और दही और मक्खन नीचे गिरा, जिसे देखकर सारे बच्चे खुश हो गए।

उस दिन मटकी ने महसूस किया कि भगवान कृष्ण की तरह माखन चुराना सिर्फ मस्ती नहीं थी, बल्कि इसके लिए हिम्मत, साहस और दोस्तों के साथ मिलकर काम करना भी जरूरी था। गांव के बड़े-बुजुर्गों ने मटकी और उसके दोस्तों की तारीफ की और उन्हें आशीर्वाद दिया।

उस रात मटकी ने अपनी दादी को जाकर बताया, "दादी, आज मैंने भी कृष्ण जी की तरह माखन चुराया!" दादी मुस्कराई और मटकी को गले से लगा लिया। मटकी ने सीखा कि जन्माष्टमी का त्योहार सिर्फ माखन चुराने का नहीं, बल्कि प्रेम, साहस और मित्रता का भी पर्व है।

और इस तरह, हर साल की तरह इस साल  समाज में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया, और मटकी जैसे छोटे बच्चों ने भगवान कृष्ण की लीला को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की।

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